मित्रो,
आप लोगों के सुझाव मान कर शब्दसुधा का रंग रूप बदला है, कैसा लगा ?
आप की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा. एक मित्र ने एतराज़ किया है
कि अपने ही ब्लाग पर मैंने अपने नाम के साथ डॉ. लगाया है. जो सही
नहीं है. डॉ. दूसरे आप के नाम के साथ लगाते हैं स्वयं नहीं.
दोस्तों ! यह अलबेला भाई ने लगाया है. मैं उन्हें कई बार डॉ. हटाने को
कह चुकीं हूँ. हर बार अपने अलबेले अंदाज़ में वह टाल जाते हैं--
''दीदी नाम के साथ डॉ. लगाने में आप को कितना समय लगा. कड़ी
मेहनत की. इतनी जल्दी थोड़े ही हट सकता है. उतना नहीं तो थोड़ा
समय तो लगेगा ही.''
अब भाई के इस जवाब पर क्या करूँ ?
फिर मिलते हैं ...
सुधा ओम ढींगरा
5 comments:
डॉ तो उपाधि है, आपका अधिकार है, जरुर लगाईये..श्री, जी..आदि दूसरे लगाते हैं.
अच्छा लगा ब्लॉग और इसका कलेवर!!
बधाई.
यही तो मैं भी कहता हूँ समीरलालजी कि श्री जी वगैरह हो तो
स्वयं के नाम पर स्वयं नहीं चिपकाना चाहिए... डॉ० तो एक उपाधि है
जो कि आपने अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर प्राप्त की है ये
कोई आत्म-गर्वोक्ति नहीं बल्कि परिचयात्मक शब्द है ।
ये कोई कालाधन थोड़े ही है जिसे छिपाना पड़े......हा हा हा हा
अच्छा, मैं तो हटा भी दूँ ....क्योंकि आपके एक मित्र ने इस पर एतराज़
किया है किन्तु हटाने के बाद यदि एक से ज़्यादा लोगों ने आपत्ति की
तो ? तो क्या करना होगा ?
अरे दीदी...........कविता के क्षेत्र में तो मैं ऐसे अनेक लोगों को जानता हूँ
जो डॉ० न होते हुए भी ये शब्द अपने नाम के साथ लगाते हैं ताकि उनका
रूतबा बढे .....और आप होते हुए भी संकोच कर रही हैं ...कर दी न पंजाबियों
वाली बात !
पर पंजाबी इतने संकोची कब से हो गए ?
अच्छा ..जालंधर वाले होते होंगे......हा हा हा हा
आपका बलाग बहुत अच्छा लगा बधाई और शुभकामनायें
अच्छा हो गया है. पठनीय और आकर्षक.
बहुत सुन्दर और सादगीपूर्ण हो गया.
बधाई.
चन्देल
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