Tuesday, August 18, 2009
रात भर
रात भर
यादों को
सीने में
उतारती रही,
चाँद- तारों
को भी
चुप-चाप
निहारती रही.
शांत
वातावरण
में न
हलचल हो कहीं,
तेरा नाम
धीरे से
फुसफुसा कर
पुकारती रही.
तेरी नजरें
जब भी
मिलीं
मेरी नज़रों से,
उन क्षणों को
समेट
पलकों का सहारा
देती रही.
उदास
वीरान
उजड़े
नीड़ को,
अश्रुओं
कुछ आहों
चंद सिसकियों से
संवारती रही.
जीवन की
राहों में
छूट गए
बिछुड़ गए जो ,
मुड़-मुड़ के
उन्हें देखती
लौट आने को
इंतज़ारती रही.
सुधा ओम ढींगरा
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4 comments:
अत्यन्त प्रभावशाली रचना
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ना लाओ ज़माने को तेरे-मेरे बीच
VATAVARAN MEIN
HALCHAL
N HO KAHIN
TERA NAAM
DHERE SE
FUSFUSAA KAR
PUKAARTEE RAHEE
SARAS AUR SUNDAR
PANKTIYAN HAIN
BADHAAEE
शब्दो और भावो का तारतम्य मोहक है.
बहुत सुन्दर रचना -- एहसास की रचना
aati sunder
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