कई बार यादें बहुत तंग करती है, अगर अपने साथ छोड़ चुके हों. तो कई बार मन छोटी सी बात पर भी भारी हो जाता है. ऐसे में कुछ लिखा गया-- पेश है--
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
हमें तो
टूटा सा दिल
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
बारिश में भीगते
शरीरों की भीड़ में
हमें तो
बचपन
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया---
तुम
अकारण रो पड़े--
दोपहर देख
ढलती उम्र की
दहलीज़ पर
हमें तो
यौवन
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
उदास समंदर किनारे
सूनी आँखों से
हमें तो
अधूरा सा
धरौंदा
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
तुम
अकारण रो पड़े--
धुँधली आँखों से
सुलघती लकड़ियाँ देख
हमें तो
कोई
अपना याद आया,
तुम्हें क्या याद आया--
सुधा ओम ढींगरा
Monday, July 20, 2009
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6 comments:
तुम
अकारण रो पड़े--
बारिश में भीगते
शरीरों की भीड़ में
बारिश में भीगते शरीरों की भीड़ में ये प्रयोग बहुत अच्छा है बहुत कुछ इंगित कर रहा है ये । आपकी सक्रियता से हूं बहुत कुछ मिलेगा । रक्षा बंधन आने को है अपने इस छोटे भाई को उस दिन याद कीजियेगा ।
kavita jaisee kavita
lekin
kavita se kuchh zyada kavita.................
marm k marm tak
vedna k charm tak
arthat
samvedna k charmotkarsh k bhi charm bindu tak
aapne apni abhivyakti ko sparsh kiya hai
yon lagta hai maano
shabd me pran phoonk kar
arth ko saakar kar diya ho________
____________badhhai !
____________haardik badhaai !
aapki kavita padhi, bahut aachi lagi.
Narender Grover
बहुत याद आया ..वो बचपन ..!!
SUDHA JEE,
AAPNE YAAD DILAYA TO MUJHE YAAD AAYA
AAPKE BLOG PAR LAGEE AAPKEE PAHLEE-
PAHLEE KAVITA NE DIL KO KHOOB LUBHAYA
अधूरा सा
धरौंदा
अपना याद आया,
यादो के झुरमुट से सुन्दर रचना का सृजन हुआ है
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