Tuesday, June 5, 2012







 सादर इंडिया में प्रकाशित मेरा इंटरव्यू, जो प्रतिष्ठित रचनाकार डॉ. अनीता कपूर ने लिया |

जिस तेज़ी से पश्चिमी संस्कृति अपना रहे हैं , हिन्दी भी उसी गति से अपनाएँगे --सुधा ओम ढींगरा
: डॉ. अनीता कपूर
आप अपनी कहानियों के माध्यम से स्त्री-विमर्श और स्त्रियों को समाज में समान अधिकार के लिए कितनी जागरूकता ला पाईं हैं |
      अनीता जी, साहित्य सृजन और सामाजिक जागरूकता दो अलग विषय हैं | रचनाकार अपनी रचनाओं में सामाजिक विद्रूपताओं, शोषण, महिलाओं की स्थिति का चित्रण कर समाज के सामने उनकी दशा प्रस्तुत करता है और पाठकों को उस मुद्दे पर सोचने के लिए मजबूर करता है | जागरूकता और परिवर्तन तो सामाजिक संस्थाएँ एवं सामाजिक प्रणेता ही ला सकते हैं | पाठक अगर किसी रचना को पढ़ कर उस पर गहन चिन्तन ही कर ले तो लेखक का लिखा सार्थक हो जाता है | वहीं से जागरूकता और परिवर्तन का बीज पड़ता है | वैसे लेखक कभी यह सोच कर नहीं लिखता कि यह रचना स्त्री विमर्श की है, समीक्षक और आलोचक ही उसे वर्गों में बांटते हैं | यह भी नहीं कह सकते कि साहित्य क्रांति नहीं लाता | अमेरिका में 1852 में Harriet Beecher Stowe ने एक उपन्यास लिखा था Uncle Tom's Cabin और यह उपन्यास गुलाम अश्वेतों के जीवन का सजीव चित्रण करता 1852 में लिखा गया पहला ऐसा उपन्यास था जिसने क्रांति की लहर अश्वेतों में पैदा कर दी थी | इस पुस्तक की अमेरिका में उस समय 310,000 प्रतियाँ बिकी थीं और इससे तीन गुना इंग्लैंड में जो कि उस समय एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी | इसका प्रभाव यह हुआ कि अमेरिका के उत्तरी प्रान्तों में अश्वेतों को गुलाम बनाने के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई और कई प्रश्न चिन्ह लगाए गए | चाहे अमेरिका के दक्षिणी भाग ने इसे दबा दिया और 1857 में मैरीलैंड के एक स्वतंत्र अश्वेत किसान और प्रचारक को उसके घर से पकड़ कर 10 वर्षों के लिए जेल भेज दिया क्योंकि उसने इस उपन्यास में दी गई सामग्री को अश्वेतों में जागृती और प्रेरणा पैदा करने के लिए प्रयोग किया था | अमेरिका के दक्षिणी प्रान्तों में अश्वेतों को स्वतंत्रता दिलवाने में इस उपन्यास का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है , चाहे वर्षों लग गए अश्वेतों को स्वतंत्रता प्राप्त करने में | पूरी दुनिया के साहित्य में इस तरह के बहुत से उदाहरण हैं जब साहित्य समय, समाज और जनहित को ले कर लिखा गया और वह समाज में परिवर्तन ले आया |
     हाँ, कुछ महिलाओं के पत्र, इमेल्स और फ़ोन काल्स ज़रूर ऐसे आते हैं, जिसमें कहा हुआ होता है कि आप की कहानियाँ हमारा दर्द कहती हैं |
आप पिछले तीस वर्षों से अमरीका में रहकर लेखन कर रही हैं । उस दौर के लेखन में और आज के लेखन में आप क्या अन्तर पाती हैं ?
      
अनीता जी, मैं पिछले तीस वर्षों से अमेरिका में रह ज़रूर रही हूँ पर तीस वर्षों का निरन्तर लेखन है यह नहीं कह सकती | पिछले बारह-तेरह सालों से निरन्तर कार्य चल रहा है | शादी करके जब मैं यहाँ आई तो पत्रकार, कहानीकार, कवयित्री, कलाकार जाने क्या -क्या थी, सब कुछ छूट गया और बस कामकार बन गई | यूनिवर्सिटी में साईकोलोजी पढ़ने लगी | यहाँ की डिग्री लिए बिना इस देश में कुछ कर नहीं सकती थी | सेंट लुईस मिज़ूरी में शादी के बाद आई थी और पता चला कि वहाँ का वाशिंगटन विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग खोलना चाहता है और प्राध्यापक की ज़रुरत है | हिन्दी की पीऍचडी काम आई, विभाग खुल गया और पढ़ाने लगी, साथ -साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी करने लगी | धोबी, बावर्ची, सफाईवाली, हलवाई पता नहीं क्या -क्या बन गई | उस समय के अमेरिका और आज के अमेरिका में बहुत अन्तर है | भारतीय कम थे | भारत और भारतीयों के प्रति स्थानीय लोगों में उदारता कम थी | मैं परिवेश, संस्कृति और भाषा की चुनौतियों में उलझ कर रह गई | संवेदनशील हूँ लगा कि भाषा का प्रचार -प्रसार ज़रूरी है, वह पहली प्राथमिकता बन गई | अस्मिता का प्रश्न था, बच्चों को भाषा से ही संस्कृति सिखाई जा सकती थी | अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी समिति के साथ जुड़ गई और रेडियो प्रोग्राम चलाने लगी, जिसका प्रसारण हिन्दी में होता था | शादी से पहले मैं रेडियो, टीवी और रंगमंच की कलाकार थी, वह अनुभव काम आया | छोटे बच्चों के लिए हिन्दी का स्कूल खोला | कहने का भाव कि भीतर बहुत कुछ सिमटने लगा, पर कलम की नोंक पर नहीं आया, लेखन कुछ समय के लिए थम गया | पाँच एक वर्षों की ख़ामोशी के बाद कलम उठाई | साल में एक या दो कहानियाँ लिखी जातीं वे छपने भेजती | समय ले कर वे भारत में छपतीं | कविताएँ यहाँ -वहाँ छप जातीं | धीमी गति से काम चलता रहा | मुझे यहाँ आ कर अपने आप को सँभालने में बहुत समय लगा |
      अंतरजाल के आने तक यहाँ हिन्दी का माहौल बन गया था और मेरी ज़िम्मेदारियाँ भी कम हो गई थीं | भीतर का लेखक भी उठ खड़ा हुआ और वर्षों के अनुभवों से भरा पड़ा बंद संदूक खुल गया |
      उस समय के लेखन में नास्टेल्जिया अधिक था | विषय सीमित थे | अपनाये हुए देश को स्वीकारा नहीं गया था | दो संस्कृतियों के मूल्यों का टकराव, पूर्व- पश्चिम का अन्तर, अंतर्द्वंद उस समय की कहानियों का मुख्य विषय था | अब लेखन में परिपक्वता आ गई है | विषयों में वृहदता है | एक नई व्याकुलता, बेचैनी तथा एक नए अस्तित्व बोध व आत्मबोध का साहित्य है जो हिन्दी साहित्य को अपनी मौलिकता एवं नए साहित्य संसार से समृद्ध करता है |
आज भारत की छवि के साथ-साथ साहित्य लेखन में भी आए परिवर्तन को आप किस रूप में लेती है?
    
साहित्य समाज का दर्पण है तो साहित्य में यह परिवर्तन आना स्वाभाविक है | साहित्य की प्रगति का यह सकारात्मक सन्देश है | वैश्वीकरण और अंतरजाल ने दुनिया को सीमित कर दिया है | भारतीय जीवन दर्शन में पनपती पश्चिमी सोच अब विदेशों में रचे जा रहे साहित्य के लिए सम्पादकों, आलोचकों और पाठकों को सोचने और समझने पर मजबूर कर रही है | पश्चिमी जीवन मूल्यों और भारतीय जीवन मूल्यों के बीच की खाई बहुत बड़ी थी जो स्वयं भारत में ही कम होती जा रही है | भारत में जिसे आत्म- प्रदर्शन और आत्म- विज्ञापन की संज्ञा दी जाती है, वह अमेरिका में अपने आप को उद्वरित करना कहलाता है | जीवन दर्शन का यह मूलभूत अन्तर अमेरिकी हिन्दी साहित्य का मूल कथ्य भी है | इस कथ्य को अब भारत में नकारा नहीं, समझा जा रहा है | भारत में तेज़ी से बदलते मूल्य, जीवन दर्शन और हिन्दी साहित्य, अमेरिका की संस्कृति, स्वतंत्र सोच, उससे पनपे विचार और उन विचारों से रचित साहित्य को स्वीकारने लगा है | पूरे विश्व के रचनाकार अंतरजाल पर एक दूसरे से परिचित हो जाते हैं जो कुछ वर्ष पहले तक सम्भव नहीं था |
आपने लेखन कब से शुरू किया और सबसे पहली रचना कौनसी थी आपकी ?
     
मैं पोलिओ सर्वाइवल हूँ और बचपन में खेल नहीं पाई अतः ऊर्जा और दर्द कहीं तो निकलना था | छुटपन से ही लिखने लगी थी | पहली रचना कौन सी थी याद नहीं | हाँ जो पहली कविता दैनिक हिन्दी मिलाप के बाल स्तम्भ में छपी, वह थी 'खो गई' |
आप कहानी, कविता और लेख सभी विधाओं में लिखती है, और सभी विधाओं पर सहज रूप से आपकी बहुत अच्छी पकड़ है। आपको इसकी प्रेरणा कहाँ से मिलती है?
    
अनीता जी, मैं सिर्फ लिखती हूँ | विचार विधाएँ स्वयं ही ढूँढ लेते हैं | मेरे लिए साहित्य तो खाना -पीना, ओढ़ना- बिछौना है | इश्क करती हूँ इससे और प्रेरणा भी इसी से ही मिलती है |
आप की राय में आज न्यू मीडिया के युग में साहित्यकार को अन्तर्जाल और वेब दुनिया से कितना जुड़ना चाहिए ?
      उतना ही जिससे उसकी सृजनात्मकता प्रभावित न हो |
आप हिन्दी-चेतना की संपादिका है, साहित्यकार और पत्रकार दोनों हैं, आपकी नज़रों में हिन्दी साहित्य का भविष्य क्या होगा?
     
मैं बहुत सकारात्मक सोच की हूँ | जो भाषा चीन की भाषा मैंडरिन को भी पीछे छोड़ रही है उसके साहित्य का भविष्य बहुत उज्ज्वल है | अंतरजाल पर वेब पत्रिकाओं, इ-पत्रिकाओं, चिट्ठे, इ-बुक्स का प्रसार और बढ़ जायेगा | विश्व के कोने -कोने से पाठक इसके साथ जुड़ेंगे | विश्व की विभिन्न भाषाओं में हिन्दी साहित्य का अनुवाद होगा जो इसे वृहद् फलक देगा | मुद्रित पत्रिकाओं और पुस्तकों को भी अंतरजाल पर बड़ा बाज़ार मिलेगा | मेरी नज़रों में हिन्दी साहित्य का भविष्य बहुत सुन्दर और संतोषप्रद है |
पत्रिका का सम्पादन और साहित्य-लेखन में आप किस कार्य को ज्यादा चुनौतीपूर्ण मानती हैं ?
    
अनीता जी, दोनों की अपनी प्रतिबद्धताएँ हैं | लेखन विचारों, विषय और मूड पर निर्भर करता है | संपादन समय की निर्धारित सीमा में कैद रहता है | मैं दोनों का आनन्द लेती हूँ, इसलिए चुनौतीपूर्ण नहीं मानती |
भारत में लोग अँग्रेजी के तरफ भाग रहे हैं, इसके विपरीत आप अमरीका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य वर्षों से कर रही हैं, दोनों देशों में हिन्दी भाषा के भविष्य के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी ?
     देखें, मैं पहले भी कह चुकीं हूँ, बहुत आशावान हूँ | हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है, बेशक इस समय अंग्रेज़ी उसे प्रभावित कर रही है पर हिन्दी का कुछ बिगाड़ नहीं सकती | इतिहास साक्षी है कि हर देश, हर काल में समय का चक्र कभी भाषा और कहीं संस्कृति को प्रभावित करता रहा है |( हँसते हुए ) लगता है पश्चिम से हिन्दी भारत लानी पड़ेगी, तब भारत वासी चेतेंगे| जिस तेज़ी से पश्चिमी संस्कृति अपना रहे हैं , हिन्दी भी उसी गति से अपनाएँगे |
भारत में महिला साहित्यकार और अमरीका में बसी महिला साहित्यकारों के लेखन में क्या कुछ अंतर पाती हैं आप, या दोनों आपकी नज़रों में समान हैं?
    
महिलाएँ पूरी दुनिया में एक सामान हैं | अन्तर परिवेश और सामाजिक सरोकारों का है | भारत में जिस स्त्री- विमर्श की बात होती है, अमरीका में बसी महिला साहित्यकारों का लेखन उससे आगे शुरू होता है | स्वतंत्र महिला के शोषण, चिन्तन , देह की आज़ादी के बाद की चुनौतियाँ, विदेशी समाज के सरोकार, विद्रूपताओं, विसंगतियों को चित्रित करता , प्रवासी भारतीयों की मानसिकता को उकेरता, दो संस्कृतियों के टकराव में टूटते जीवन मूल्यों, रिश्तों की महीनता को बुनता, प्रवासवास के अकेलेपन से जूझता संवेदनशील लेखन है |
विदेशों में हो रहे कहानी लेखन के बारे में आपका दृष्टिकोण क्या है ? क्या यह कहानी लेखन भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति के सामंजस्य और टकराव दोनों परिस्थितियों को सही मायने में चित्रित करता है ।
      
अनीता जी, विदेशों में लिखी जा रही कहानियाँ संस्कृतियों के टकराव से पैदा हुई परिस्थितियों से कहीं आगे निकल चुकी हैं | यहाँ की कहानियों में बाज़ारवाद, व्यक्तिवाद, भौतिकवाद और देहवाद के साथ -साथ यहाँ के जीवन की व्याकुलता, बेचैनी तथा एक ऐसे अस्तित्वबोध व आत्मबोध का परिचय भी मिलता है जो भारत के लिए नया है |
साहित्य सर्जन के लिए प्रवासी शब्द के इस्तेमाल से आप कितनी सहमत है?
    
देश से बाहर रहते हैं, प्रवासी तो हम हैं पर हमारे लेखन को प्रवासी न कहें | वह बात चुभती है |
लेखन के साथ-साथ आप अमरीका में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए कवि-सम्मेलन और नाटकों का भी आयोजन समय-समय पर करती रहती हैं, इतनी ऊर्जा कहाँ से पाती हैं आप?
     मुझे स्वयं नहीं पता चलता कैसे सब कुछ हो जाता है | मेरे ख़याल से सकारात्मक सोच और हिन्दी के लिए कुछ करने की चाह सब कुछ करवा देती है |
हिन्दी साहित्य में आपको किसका लेखन प्रभावित करता है?
      
सच कहूँ, अभी तक मैं एक विद्यार्थी हूँ और नए पुराने बहुत से लेखकों से सीखती हूँ और प्रभावित रहती हूँ |

2 comments:

Rachana said...

di aapka kaha ek ek shabd sahi hai .
saader
rachana

डॉ॰ विजया सती said...

sudhaaji
kahanee bahut bhaavpoorn aur saarthak hai shilp bhee sugadh !
likhtee rahen
shubhkamana
vijaya sati