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Thursday, August 27, 2009

कुछ कहना है....

5 comments
मित्रो,
 
आप लोगों के सुझाव मान कर शब्दसुधा का रंग रूप बदला है, कैसा लगा ?
 
आप की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा. एक मित्र ने एतराज़ किया है
 
कि अपने ही ब्लाग पर मैंने अपने नाम के साथ डॉ. लगाया है. जो सही
 
नहीं है. डॉ. दूसरे आप के नाम के साथ लगाते हैं स्वयं नहीं.
 
दोस्तों ! यह अलबेला भाई ने लगाया है. मैं उन्हें कई बार डॉ. हटाने को
 
कह चुकीं हूँ. हर बार अपने अलबेले अंदाज़ में वह टाल जाते हैं--
 
''दीदी नाम के साथ डॉ. लगाने में आप को कितना  समय लगा. कड़ी
 
मेहनत की. इतनी जल्दी थोड़े ही हट सकता है. उतना नहीं तो थोड़ा
 
समय तो लगेगा ही.'' 

अब भाई के इस जवाब पर क्या करूँ ?
 
फिर मिलते हैं ...
 
सुधा ओम ढींगरा

Sunday, July 19, 2009

शब्द सुधा की सादर प्रस्तुति .....२

2 comments
मेरी पहली पोस्ट के बाद बहुत सी ईमेल आईं कि मैं अपने कुछ प्रियजनों को भूल गई हूँ. नहीं दोस्तों! प्रियजन प्रिय होते हैं, उन्हें कैसे भूला जा सकता है? वे मेरे ही नहीं जन -जन के प्रिय हैं, मेरे अनुज हैं और उनका स्नेह ही मेरी शक्ति है. छोटों की बारी हमेशा बाद में आती है. दोनों के बारे में दूसरी पोस्ट में ही लिखने का विचार था. दोनों बांके नौजवान हैं. अभिनव शुक्ल भाषा की मज़बूत पकड़ लिए, प्रतिभा सम्पन्न, सभ्य, सुसंस्कृत, तेजस्वी कवि है. अथर्व की बुआ बना उसने मेरे परिवार का विस्तार कर दिया है। दूसरे अनुज गजेन्द्र सोलंकी संस्कारी, ऊर्जावान, ओजस्वी कवि हैं, अभी कुंवारे हैं. भाभी ढूँढ रही हूँ. दोनों गबरू जवान हैं-हिन्दी साहित्य और मुझे इनसे बहुत आशाएं हैं. जानती हूँ दोनों की शुभकामनाएँ और स्नेह मेरे साथ है। गुरु पूर्णिमा पर मुझे एक और तेजस्वी, ओजस्वी, ऊर्जा से भरपूर, साहित्य साधक, शब्दों का जादूगर नौजवान अनुज पंकज सुबीर मिला. परिवार का और विस्तार हुआ. इनका स्नेह ही मेरी पूँजी है । आदरणीय डॉ, कमलकिशोर गोयनका, डॉ. नरेन्द्र कोहली और डॉ. प्रेम जन्मेजय के आशीर्वाद तो हमेशा मेरे साथ हैं. इनके मार्गदर्शन की तो पग-पग पर मुझे ज़रुरत रहती है।
अगली बार से कुछ अनुभव साँझे करुँगी।
तब तक के लिए......
सुधा ओम ढींगरा

Thursday, July 16, 2009

शब्द्सुधा की सादर प्रस्तुति...............

19 comments
अनुज अलबेला खत्री जी ने यह ब्लाग बना कर मुझे सौंप दिया और कहा कि दीदी अब तक आप ने इतने अनुभव समेटे हैं उन्हें लिख डालिए इस में. अपनी व्यस्तता के चलते , कई दिन इस तरफ ध्यान नहीं दे पाई. पर आखिर में अनुज की बात माननी पड़ी.

मित्रो ! इसे शुरू करने से पहले मैं अपने अग्रज 'हिन्दी चेतना' के मुख्य संपादक श्री श्याम त्रिपाठी जी को नमन करती हूँ, जिनका आशीर्वाद मेरी शक्ति है. वे मुझे भाई कहतें हैं. ओम व्यास ओम जी भी तो मुझे भाई कहते थे. कभी बहन नहीं कहा... फ़ोन पर बात शुरू करते ही कहते थे--सुधा भाई, क्या हाल है? भाई मुझे पता है, आप मुझे देख रहे हैं और आप की शुभ कामनाएँ मेरे साथ हैं.

मैं अपनी घनिष्ट सहेलिओं, वरिष्ट कवयित्री डॉ।अंजना संधीर, प्रतिष्ठित कथाकार इला प्रसाद के स्नेह के बिना इसे शुरू नहीं कर सकती जो हर दुःख सुख में मेरे साथ खड़ी रहती हैं। वरिष्ठ कवयित्री, कथाकार डॉ. सुदर्शन प्रियदर्शनी, प्रतिष्ठित कवयित्री रेखा मैत्र, शशि पाधा , राधा गुप्ता का सहयोग मेरी उर्जा है.

ई-कविता की त्रिमूर्ति (अनूप भार्गव, घनश्याम गुप्ता, राकेश खंडेलवाल) ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया है. उन्हें नमन किये बिना मैं आगे नहीं बढ़ सकती.

रेडियो सबरंग के संचालक, निर्देशक, संरक्षक अपने भाई चाँद शुक्ला जी को इस ब्लाग को शुरू करने से पहले प्रणाम करती हूँ . उनका आशीर्वाद मेरे लिए बहुत महत्त्व रखता है.

यू. के के बड़े भाई गुरुवर प्राण शर्मा और आदरणीय महावीर जी( जिन्होंने अपने ब्लाग में हमेशा मुझे स्थान दिया) को कलम पकड़ने से पहले चरणवन्दना.

यू .के के वरिष्ठ, प्रतिष्ठित, चर्चित , सम्माननीय कथाकार तेजेन्द्र शर्मा जिनकी कहानियों ने मेरे जीवन को एक नया मोड़ दिया. उनकी आलोचना मेरी कहानियों को सुदृढ़ करने में सहायता करती है. जानती हूँ उनका आशीर्वाद मेरे साथ है.

प्रसिद्द, वरिष्ठ साहित्यकार, उपन्यासकार रूप सिंह चंदेल जी( जिन्होंने रचनासमय और वातायन -अपने ब्लाग्स में मुझे बहुत सम्मान दिया ) और सुभाष नीरव जी जो कवि , नामवर कथाकार एवं प्रतिष्ठित अनुवादक हैं और इनके कई ब्लाग्स हैं। साहित्य निधि को समृद्ध करने में इनका बहुत योगदान हैं. दोनों साहित्यकारों की शुभकामनायें लिए बिना कैसे कुछ लिखा जा सकता है?

साहित्य साधक मित्र, अनुज आत्माराम ( गर्भनाल - पत्रिका) का सहयोग प्रेरणा बन मेरी रचनात्मकता और मौलिकता को नए पंख देता रहता है.

सभी ब्लागरस का साथ और शुभ कामनाएँ चाहती हूँ. साहित्य -शिल्पी के राजीव रंजन प्रसाद तो हमेशा मुझे साहित्य शिल्पी में छापते हैं. आभारी हूँ.

अनुभूति, अभिव्यक्ति की पूर्णिमा वर्मन जी और साहित्य कुञ्ज के सुमन घई को दाद देती हूँ, जो इतने वर्षों से हिंदी साहित्य को नायाब हीरे जवाहरात दे रहे हैं.

अंत में दैनिक पंजाब केसरी के मुख्य संपादक श्री विजय चोपड़ा जी के आशीर्वाद ( जिनके मार्ग दर्शन से मैं एक स्पष्ट और निडर पत्रकार और लेखिका बनीं) और अपने परिवार के सभी सदस्य जिन्हें ईश्वर ने अपने सान्निध्य में ले लिया है, के आशीर्वाद के साथ अपनी मेल समाप्त करती हूँ।

इसे पढ़ने और अपना समय देने के लिए आभारी हूँ.

सुधा ओम ढींगरा