बाँट में, 
 अपने हिस्से का सब छोड़, 
 कोने में पड़ी 
 सूत से बुनी वह मंजी 
अपने साथ ले आई,
 जो पुरानी, फालतू  समझ 
 फैंकने के इरादे से 
 वहाँ रखी थी.
बेरंग चारपाई को उठाते 
 बेवकूफ लगी थी मैं,
 आँगन में पड़ी 
 बचपन और जवानी का 
 पालना थी वह.
नेत्रहीन मौसी ने 
 कितने प्यार से 
 सूत काता, अटेरा और 
 चौखटे को बुना था,
 टोह- टोह कर रंगदार सूत 
 नमूनों में डाला था.
चौखटे को कस कर जब 
 चारपाई बनी, 
 तो हम बच्चे सब से 
 पहले उस पर कूदे थे.
उसी चारपाई पर मौसी संग 
 सट कर सोते थे,
 सोने से पहले कहानियाँ सुनते  
 और तारों भरे आकाश में, 
 मौसी के इशारे पर
 सप्त ऋषि और आकाश गंगा ढूँढते थे.
 और फिर अन्दर धंसी 
 मौसी की बंद आँखों में देखते--
 मौसी को दिखता है---- 
 तभी तो तारों की पहचान है.
हमारी मासूमियत पर वह हँस देती 
 और करवट बदल कर सो जाती, 
 चन्दन की खुश्बू  वाले उसके बदन 
 पर टाँगें रखते ही, 
 हम  नींद की आगोश में लुढ़क जाते.
 
चारपाई के फीके पड़े रंग 
 समय के धोबी पट्कों से 
 मौसी के चेहरे पर आईं 
 झुरियाँ सी लगते हैं.
जीवन की आपाधापी से 
 भाग जब भी उस 
 चारपाई पर लेटती  हूँ,
 तो मौसी का 
 बदन बन वह  
 मनुहार और दुलार देती है .
 हाँ चन्दन के साथ अब  
 बारिश, धूप में पड़े रहने 
 और त्यागने के दर्द की गंध
 भी आती है, 
 पर उस बदन पर टांगे
 फैलाते ही नींद चली आती है.....                                              
Friday, October 30, 2009
Thursday, October 22, 2009
Friday, October 16, 2009
मैं दीप बाँटती हूँ.....
मैं दीप बाँटती हूँ.....
इनमें तेल है मुहब्बत का
बाती है प्यार की
और लौ है प्रेम की
रौशन करती है जो
हर अंधियारे
हृदय औ' मस्तिष्क को.
मैं दीप लेती भी हूँ...
पुराने टूटे- फूटे
नफरत,
इर्ष्या,
द्वेष के दीप,
जिनमें तेल है-
कलह- क्लेश का
बाती है वैर -विरोध की
लौ करती है जिनकी जग-अँधियारा.
हो सके तो दे दो इन दीपों को
ले लो नए दीप
प्रेम, स्नेह और अनुराग के दीप
जी हाँ मैं दीप बाँटती हूँ ............
Friday, October 2, 2009
नेक दिल
 राले शहर, नार्थ कैरोलाईना में स्थापित गाँधी जी की प्रतिमा 
वह
नेक दिल
इन्सान था.
लोगों के लिए
भगवान था.
 
नेक दिल
इन्सान था.
लोगों के लिए
भगवान था.
जिसने अपना 
सब कुछ लुटाया,
ख़ुद को मिटाया कि
देश आज़ाद हो सके.
 
सब कुछ लुटाया,
ख़ुद को मिटाया कि
देश आज़ाद हो सके.
भावी पीढ़ी
सुख की साँस ले सके.
कुर्बानी उसकी रंग लाई......
देश आज़ाद हुआ,
वह कल की बात हुआ.
 
सुख की साँस ले सके.
कुर्बानी उसकी रंग लाई......
देश आज़ाद हुआ,
वह कल की बात हुआ.
समय के साथ 
जब उसका ध्यान आया.
लोगों का मन
बहुत झुंझलाया .
 
जब उसका ध्यान आया.
लोगों का मन
बहुत झुंझलाया .
तब 
झट से
किसी कंकर
पत्थर की सड़क पर
नाम लिखवाया.
चौराहे पर
बुत लगवाया.
 
झट से
किसी कंकर
पत्थर की सड़क पर
नाम लिखवाया.
चौराहे पर
बुत लगवाया.
विचारों,
आदर्शों को
सीधा श्मशान पहुँचाया
और
गहरे दफनाया.
सुधा ओम ढींगरा
 
आदर्शों को
सीधा श्मशान पहुँचाया
और
गहरे दफनाया.
सुधा ओम ढींगरा
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