सच कहूँ,
चाँद- तारों की बातें
अब नहीं सुहाती .....
वह दृश्य अदृश्य नहीं हो रहा
उसकी चीखें कानों में गूंजती हैं रहती |
उसके सामने पति की लाश पड़ी थी,
वह बच्चों को सीने से लगाए
बिलख रही थी ....
पति आत्महत्या कर
बेकारी, मायूसी, निराशा से छूट गया था |
पीछे रह गई थी वह,
आर्थिक मंदी की मार सहने,
घर और कारों की नीलामी देखने |
अकेले ही बच्चों को पालने और
पति की मौत की शर्मिंदगी झेलने |
बार -बार चिल्लाई थी वह,
कायर नहीं थे तुम
फिर क्या हल निकाला,
तंगी और मंदी का तुमने |
आँखों में सपनों का सागर समेटे,
अमेरिका वे आए थे |
सपनों ने ही लूट लिया उन्हें
छोड़ मंझधार में चले गए |
सुख -दुःख में साथ निभाने की
सात फेरे ले कसमें खाई थीं |
सुख में साथ रहा और
दुःख में नैया छोड़ गया वह |
कई भत्ते देकर
अमरीकी सरकार
पार उतार देगी नौका उनकी |
पर पीड़ा,
वेदना
तन्हाई
दर्द
उसे अकेले ही सहना है |
सच कहूँ,
प्रकृति की बातें
फूलों की खुशबू अब नहीं भरमाती......
6 comments:
अच्छी कविता
सच कहूँ,
चाँद- तारों की बातें
अब नहीं सुहाती .....
....bahut hi maarmik prastuti
kayee sawal jehan mein ubhar kar aate hain...lekin sateek uttar yahi hi.....
पर पीड़ा,
वेदना
तन्हाई
दर्द
उसे अकेले ही सहना है |
..kitna kuch kah gayee aap is rachna mein... aapko 'Garbhnal' mein padhti hun bahut achha samajik tathyon par likhti hai aap...aabhar
निश्चय ही इन दृश्यों के बाद किसी को भी चांद तारों की बात नहीं सुहाएगी॥
bahot achcha likhi hain aap.
बहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी कविता। बधाई।
नव वर्ष पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
"सच कहूँ " पर पीड़ा ,वेदना ,तन्हाई,दर्द उसे अकेले ही सहना है |सच कहूँ प्रकृति की बातें ,फूलों की खुशबू अब नही भामाते |आप के इस विवरण ने दिल को छू लिया |आप को अभिनन्दन |आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग में भी विजित करें और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें |
blog---http //kumar2291937.blobspot.com
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