अद्भुत कृति हूँ मैं,
उसी माटी से
उसने मुझे घड़ा है,
जिस माटी में एक दिन
सब को मिट जाना है |
नन्हें से दीप का आकार दे
आँच में तपा कर
तैयार किया है मुझे
अँधेरे को भगाने |
फिर छोड़ दिया
भरे पूरे संसार में
जलने औ' जग रौशन करने |
हूँ तो नन्हा दीया
हर दीपावली पर जलता हूँ |
निस्वार्थ, त्याग, बलिदान
का पाठ पढ़ाता हूँ |
संसार में रौशनी बांटता
मिट जाता हूँ |
सुबह
मेरे आकार को
धो- पौंछ कर
सम्भाल लिया जाता है,
अगले साल जलने के लिए |
शायद यही मेरी नियति है |
दीपावली की बहुत -बहुत बधाई ..शुभकामनाएँ
3 comments:
बहुत कुछ कह दिया …………उम्दा प्रस्तुति।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर रचना!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
दीपावली की शोभा बढाने वाले नन्हें दीपक को नमन और आप को ढेर सारी बधाई दीपावली के इस मंगल पर्व पर। इस सुंदर कविता के लिए आभार॥
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